आज अंतर्राष्ट्रीय पोलियो दिवस है। ‘पोलियोमायलाईटिस’ एक ऐसा रोग है जिसने सिर्फ 100 साल पहले तक दुनिया मे आतंक फैला रखा था। लेकिन निरंतर शोधकार्य और आधुनिक चिकित्सा माध्यमों के आ जाने से यह काफी हद तक दुनिया भर से ख़त्म हो गया है। पोलियोवायरस इंसान के मासपेशियों को कमज़ोर बना देता है। वायरस केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system) मे स्थित मोटर न्यूरॉन पर हमला करती है जिससे की शरीर अलग-अलग जगहों से अकड़ जाता है और जिससे चलने और खाने मे काफी दिक्कर आती है। भाग्यवश, दुनिया भर मे विभिन्न देशों के सरकार इस रोग को ख़त्म करने मे जुटे हैं।
‘दो बूँद ज़िन्दगी के’-पोलियो मिटाओ अभियान के साथ जुड़े यह शब्द भारत मे प्रचलित हैं। फ़िल्मी जगत के कई सितारों ने इस अभियान को लोकप्रिय बनाने के लिए अपना योगदान भी दिया। विश्व स्वस्थ्य संगठन (WHO) ने भी 2014 को भारत को पोलियो मुक्त देश बतलाया। लेकिन क्या भारत इस उपलब्धि का वाकई मे हकदार है? भारत ने ‘मौखिक पोलियो टीकाकरण’ (OPV) के ज़रिये पोलियो के सबसे प्रचलित ‘वाइल्ड पोलियो’ को ख़त्म करने मे सक्षम रहा है लेकिन दुखद बात यह है की कुछ मामलों मे टीकाकरण से भी बच्चे को पोलियो हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार ‘मौखिक पोलियो टीकाकरण’ मे पोलियो वायरस का एक कमज़ोर लेकिन जैविक अंश लिया जाता है और खुराक के माध्यम से इसे बच्चे को दिया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार 25 लाख बच्चों मे से एक बच्चे के अन्दर पोलियो वायरस फिर से जागरूक हो सकता है जिससे की उस बच्चे मे पोलियो की संभावना बढ़ सकती है। आयुर्विज्ञान क्षेत्र मे ‘मौखिक पोलियो टीकाकरण’ को ‘सैबिन वैक्सीन’ कहा जाता है। भारत मे यह प्रचलित इसलिए हुआ क्योंकि इसे देने का माध्यम सस्ता, आसान और टिकाऊ है जो लगभग कोई भी दे सकता है। एक खुराक का मूल्य केवल 20-25 रुपये है।
उसी तरफ दूसरा प्रतिरक्षा का माध्यम ‘इंजेक्शन पोलियो वैक्सीन’ (IPV) है जिसे ‘सौल्क वैक्सीन’ भी कहा जाता है। हालांकि यह माध्यम मेहेंगा है जो की एक पंजीकृत नर्स या डॉक्टर की निगरानी मे ही हो सकता है, यह पोलियो वायरस का पूर्ण रूप से खात्मा करता है। लेकिन इसका मूल्य 1500-3000 रुपये के बीच है। इस वैक्सीन मे पोलियो वायरस का मृत रूप होता है जो की बच्चे की रोगक्षमता को काई हद तक मज़बूत कर देता है। हालांकि भारत सरकार ने 2015 मे सौल्क वैक्सीन’ को देशभर मे लागू कर दिया है, इसका प्रभाव दिखने मे कम से कम 5-10 साल तो लगेगा। सरकारी व्यवधान से इसका दाम काफी हद तक गिर सकता है।
पोलियो अभियान को सफल करने के लिए जागरूक होने की आवश्यकता है। आशा करते हैं की ‘विश्व पोलियो दिवस’ मे हम सभी इस रोग के बारे मे और थोड़ा सचेत हों ताकि इसका डटकर मुकाबला कर सकें।