बड़ी कोशिशों से हमने बनाया था ये गुलिस्ताँ
प्यार के सपनों से हमने सजाया था ये गुलिस्ताँ
अरमानों के आसमाँ पर रचाया था ये गुलिस्ताँ
खुशियों की तरंगों पर लहराया था ये गुलिस्ताँ
भीनी-भीनी खुशबू फूलों की फैला रहा था गुलिस्ताँ
मंद-मंद मुस्कान लिए महका रहा था गुलिस्ताँ
कैसा हसीन लगता था ये प्यारा सा गुलिस्ताँ
मानो अपनी ही अदा में मुस्कराता गुलिस्ताँ
पर न जाने क्यों अपनों को अखरा था गुलिस्ताँ
जो इतनी बेदर्दी से उन्होंने उजाड़ा ये गुलिस्ताँ
एक- एक करके फूल गुलिस्ताँ के झड़ने लगे
कुछ तोड़ दिये गये कुछ खुद ही गिरने लगे
मिट गयी अस्मत फूल की जा मिला वह धूल में
कि बाकी न था अक्श अब किसी भी फूल में
फिर भी महक से अपनी महका रहा था गुलिस्ताँ
बार-बार अपनों की याद दिला रहा था गुलिस्ताँ
बड़ी बेरहमी से तुमने क्यों हमको ये सज़ा दी
हम चले थे सजाने गुलिस्ताँ हमारी यही खता थी
पर ये न सोचो कि मिट जायेगा यह गुलिस्ताँ
कुचलो कितना भी इसे लहलहायेगा ये गुलिस्ताँ
बड़ी कोशिशों से हमने जो बनाया था गुलिस्ताँ
प्यार के सपनों से हमने जो सजाया था गुलिस्ताँ
अरमानों के आसमाँ पर जो रचाया था गुलिस्ताँ
खुशियों की तरंगों पर जो लहराया था गुलिस्ताँ
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