कुछ दिन पहले ही मैं एक दुखद खबर से वाकिफ हुआ- अभिनेता टॉम आल्टर नहीं रहे। कुछ क्षण के लिए मानो समय रुक गया हो। मुझे ‘द ब्लू आइड साहेब’ से मिलने का मौका तो नसीब नहीं हुआ लेकिन उनके कुछ ज़बरदस्त कार्यक्रम देखने का मौका ज़रूर मिला। दूरदर्शन पर प्रसारित कई कार्यक्रमों से टॉम साहेब जुड़े रहे। 1997 मे ‘शक्तिमान’ धारावाहिक के ‘महागुरु’ के किरदार से बच्चा-बच्चा वाकिफ है। टॉम साहेब का यह किरदार मुझे आज भी उतना ही आकर्षित करता है जितना की यह 20 साल पहले करता था। किसी भी 4 साल के बच्चे के लिए ‘महागुरु’ के वचन उसके अपने दादा के वचनों से कम नहीं थे। साथ ही ‘कैप्टेन व्योम’ धारावाहिक मे ‘विश्वप्रमुख’ के किरदार मे भी टॉम साहेब ने एक यादगार प्रदर्शन दिया।
इस महान कलाकार का जन्म 22 जून 1950 को उत्तराखंड के मस्सूरी मे हुआ था। उनके माता-पिता ईसाही मिशनरी थे। अपने छात्र जीवन मे टॉम साहेब ने हिंदी पर दक्षता हासिल की। वे उर्दू और शायरी के भी बड़े शौक़ीन थे। 18 साल की उम्र मे टॉम अम्रीका के ‘येल’ विश्वविद्यालय मे पढ़ने गए लेकिन उन्हें वहाँ का माहौल और रहन-सहन पसंद नहीं आया और वो भारत वापस आ गए। 19 साल की उम्र मे हरयाणा मे जगध्री शहर मे उन्होंने कुछ समय स्कूल टीचर की भूमिका भी निभायी। लेकिन इससे भी असंतुष्ट हो उन्होंने कई तरह के व्यवसाय मे भाग लिया। 1969 मे जब उन्होंने अपने दोस्तों के साथ अभिनेता राजेश खन्ना की फिल्म ‘आराधना’ देखी तो वे मंत्र-मुग्ध हो गए। वे इस हद तक फिल्म जगत के दीवाने हो गए कि उन्होंने ‘भारतीय फिल्म और टेलीविज़न संस्थान’ (FTII) मे दाखिला भी ले लिया। अपने FTII दिनों के दौरान वे मशहूर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह और अभिनेत्री शबाना आज़मी से भी परिचित हुए और अपने एक्टिंग के हुनर को और मज़बूत किया।
फिल्म जगत मे भी टॉम को निर्देशकों ने ज़्यादातर ‘फिरंगी’ या ‘विदेशी’ रोल दिए। उन्होंने प्रसिद्ध निर्देशक सत्यजित रे और केतन मेहता के साथ भी काम किया था। 1977 मे रे द्वारा निर्देशित ‘शतरंज के खिलाड़ी’ मे कैप्टेन वेस्टन और 1993 मे मेहता द्वारा निर्देशित ‘सरदार’ मे लार्ड माउंटबैटन के किरदार टॉम साहेब के अभिनय जीवन से जुड़े दो महान उप्लाभ्धियाँ हैं। वर्तामान काल मे टॉम ने 2007 मे ‘भेजा फ्राई’ नाम कॉमेडी फिल्म मे भी शानदार प्रदर्शन दिया था।
फिल्मों के साथ, टॉम थिएटर से भी जुड़े रहे। ‘वेटिंग फॉर गोदोत’, ‘माई ग्रेनडैड हैड एन एलीफैंट’ और ‘ग़ालिब इन दिल्ली’ प्लेस मे भी उन्होंने यथार्थवादी प्रदर्शन दिए। समय-समय पर टॉम अपने मनपसंद खेल क्रिकेट पर भी कमेंटरी करते थे और प्रसिद्ध खेल प्रकाशन जैसे स्पोर्त्स्वीक, क्रिकेट टॉक एवं आऊटलुक के लिए भी लिखा करते थे। अपने जीवन के अंतिम क्षण तक वे फ़िल्मी दुनिया से जुड़े रहे। आज वो भले ही हमारे साथ ना हों, लेकिन उनके किरदार, उनकी दरियादिली और उनके आधुनिक ख्यालात हमेशा हमे अपने अन्दर के कलाकार को खोजने और सुदृढ़ करने के लिए प्रेरित करते रहेंगे।